Sunday, October 16, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 863 - दिल की बात ?



दो-चार-दस न बीस साल बल्कि ताहयात ॥
करवट बदल-बदल के,जाग-जाग सारी रात ॥
समझोगे कैसे तुम दिमाग़दारों ख़ब्त में ;
मैंने तो की है शायरी में सिर्फ़ दिल की बात ?
( ताहयात = सारा जीवन , ख़ब्त = पागलपन )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...