Wednesday, October 26, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 865 - उन आँखों पे पड़ी नक़ाबें हैं ॥



पढ़ो तो फ़लसफे की दो अहम किताबें हैं ॥
जो पी सको तो ये न आब ; ये शराबें हैं ॥
मगर क़िले के बंद सद्र दर सी पलकों की ;
अभी बड़ी उन आँखों पे पड़ी नक़ाबें हैं ॥
 ( फ़लसफ़ा = दर्शन ,अहम = महत्वपूर्ण ,आब = पानी ,सद्र दर = मुख्य दरवाजा ,नक़ाबें = पर्दा )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...