Thursday, October 6, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 862 - बाग़ ही बाग़ हैं



रेगज़ारों में भी बरसात की फुहारें हैं ॥
बाग़ ही बाग़ हैं फूलों की रहगुज़ारें हैं ॥
जब थीं आँखें थे सुलगते हुए सभी मंज़र ,
जब से अंधे हैं हुए हर तरफ़ बहारें हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...