Monday, September 26, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 861 - किसी उँगली से अपनी


खड़े हो , बैठ उकड़ूँ या कि औंधे लेट ; पर लिखना ॥
लिखे को काट कर या उसको पूरा मेट कर लिखना ॥
किसी उँगली से अपनी नाम मेरा तुम ज़रूर इक दिन ;
मेरे चेहरे पे , सीनो पुश्त पे जी – पेट भर लिखना ॥
( पर = परंतु , सीनो पुश्त = छाती और पीठ , जी = तबीअत )

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...