इश्क़ किया करने वाले ग़म ही पाते हैं लोग ॥
जानूँ
न क्यों झूठी अफ़वाहें फैलाते हैं लोग ?
मैं
तो मोहब्बत में ग़म खाकर भी चुप रहता मस्त ;
दोस्त
मज़े चख-चख कर भी क्यों चिल्लाते हैं लोग ?
जह्र
था उसमें जो खा बैठे सुनकर कितने हाय ;
मान
के सच , सचमुच दहशत में मर जाते हैं लोग ॥
कुछ
तो रखा करते ममियों का भी ज़िंदों सा ख़्याल ;
और
कई जीते जी ज़िंदे मरवाते हैं लोग ॥
मैं
तो सहारा ले तिनकों का भी आ बैठूँ पार ;
जानूँ
न कैसे कश्ती थामें बह जाते हैं लोग ॥
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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