Thursday, September 8, 2016

*मुक्त-मुक्तक : 858 - मारते हैं वो ॥



कभी यूँ ही कभी ग़ुस्से में भरकर मारते हैं वो ॥
मगर तय है कि आते-जाते अक्सर मारते हैं वो ॥
झपटकर,छीनकर,कसकर,जकड़कर अपने हाथों से  ;
मेरे शीशा-ए-दिल पे खेंच पत्थर मारते हैं वो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...