Tuesday, September 17, 2024

ग़ज़ल

 


लगे सूरत से बस मासूम वैसे ख़ूब शातिर है ।।

वो दिखता पैरहन से भर मुसल्माॅं वर्ना काफ़िर है ।।

तुम्हें लगता नहीं करता वो ऐसे-वैसे कोई काम ,

हक़ीक़त में वो बस ऐसे ही कामों का तो माहिर है ।।

मेरी नज़रों में ऐसा ख़ुदग़रज़ अब तक नहीं आया ,

जो जब भी कुछ करे तो बस करे अपनी ही ख़ातिर है ।।

वो इक चट्टान का लोहे सरीखा था कभी पत्थर ,

मैं हैराॅं हूॅं वही गुमनाम अब मशहूर शाइर है ।।

किसी सूरत में उसका दिल न मुझ पर आएगा फिर भी ,

मेरा ये दिल उसी उस पर चले जाने को हाज़िर है ।।

वो रोज़ाना इरादा भागने का शहर का  करता ,

ये उस जंगल के गीदड़ का यक़ीनन वक़्त ए आख़िर है ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


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