न होता तू कोई अजगर घिसटता केंचुआ होता ।।
तेरे पीछे हिलाता दुम न फिर मैं घूमता होता ।।
जो तू होता बला का ख़ूबसूरत तो यक़ीनन बस ,
तुझे कैसे करूॅं हासिल यही सब सोचता होता ।।
न होती तुझको दिलचस्पी मेरी बातों में तो तुझसे ,
मुख़ातिब होता भी तो लब न अपने खोलता होता ।।
अगर हक़ दे दिया होता मुझे दीदार का तूने ,
तो क्यों छुपकर दरारों से तुझे मैं देखता होता ।।
न दी होती जो तूने बद्दुआ बर्बाद होने की ,
मैं क्यों आकर किनारे पर नदी के डूबता होता ?
न बदले होंगे तेरे वो बुरे हालात ही वर्ना ,
अभी तक तो तू सच मिट्टी से सोना बन गया होता ।।
न की होती जो तूने दम ब दम धोखाधड़ी मुझसे ,
मैं अपनी ज़िंदगी रहते न तुझे बेवफ़ा होता ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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