Sunday, September 15, 2024

ग़ज़ल

 








न होता तू कोई अजगर घिसटता केंचुआ होता ।।

तेरे पीछे हिलाता दुम न फिर मैं घूमता होता ।।

जो तू होता बला का ख़ूबसूरत तो यक़ीनन बस ,

तुझे कैसे करूॅं हासिल यही सब सोचता होता ।।

न होती तुझको दिलचस्पी मेरी बातों में तो तुझसे , 

मुख़ातिब होता भी तो लब न अपने खोलता होता ।।

अगर हक़ दे दिया होता मुझे दीदार का तूने ,

तो क्यों छुपकर दरारों से तुझे मैं देखता होता ।।

न दी होती जो तूने बद्दुआ बर्बाद होने की ,

मैं क्यों आकर किनारे पर नदी के डूबता होता ?

न बदले होंगे तेरे वो बुरे हालात ही वर्ना ,

अभी तक तो तू सच मिट्टी से सोना बन गया होता ।।

न की होती जो तूने दम ब दम धोखाधड़ी मुझसे ,

मैं अपनी ज़िंदगी रहते न तुझे बेवफ़ा होता ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...