Saturday, February 29, 2020

290 : ग़ज़ल - चिढ़ है जन्नत से



चिढ़ है जन्नत से न फिर भी तू जहन्नुम गढ़ ।।
अपने ही हाथों से मत फाँसी पे जाकर चढ़ ।।1।।
तुझको रख देंगी सिरे से ही बदल कर ये ,
शेर है तू मेमनों की मत किताबें पढ़ ।।2।।
तू जगह अपनी पकड़ रख नारियल जैसे ,
एक झोंके से निबौली-बेर सा मत झड़ ।।3।।
बन के क़ाबिल कर ले हासिल कोई भी हक़ तू ,
हाथ मत फैला किसी के पाँव मत गिर पड़ ।।4।।
बनके गंगा पाक रह औरों को भी कर साफ़ ,
इक जगह ठहरे हुए पोखर सा तू मत सड़ ।।5।। 
तान सीना सर उठाकर चल है गर मासूम ,
इस तरह से तू ज़मीं में शर्म से मत गड़ ।।6।। 
वो जो माल अपना भी औरों पर लुटा रखते ,
उनपे मत चोरी-जमाखोरी की तोहमत मढ़ ।।7।। 
पहले चौपड़ ताश ही मा'नी जुआ के थे ,
अब खुले मैदाँ के भी सब खेल हो गए फड़ ।।8।। 
सब ग़ुबार अपना निकल जाने दे मेरी हया ,
बाल के गुच्छों सी मत नाली में आकर अड़ ।।9।।
कितना ही कमज़ोर हो पर अपने दुश्मन से ,
होशियारी और सब तैयारियों से लड़ ।।10।।
टाट पे मखमल का मत पैबंद सिल पगले ,
क़ीमती हीरे को लोहे में नहीं तू जड़ ।।11।।
 -डॉ. हीरालाल प्रजापति

16 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०१ -0३-२०२०) को 'अधूरे सपनों की कसक' (चर्चाअंक -३६२७) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी

kuldeep thakur said...


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
01/03/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

Shalini kaushik said...

बन के क़ाबिल कर ले हासिल कोई भी हक़ तू ,
हाथ मत फैला किसी के पाँव मत गिर पड़ ।।4।।
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

Onkar said...

सुन्दर रचना

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । अनिता सैनी जी ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । कुलदीप ठाकुर जी ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । शालिनी कौशिक जी ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । ओंकार जी ।

Anita Laguri "Anu" said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई और बहुत ही प्रभावित हुई आप बहुत ही अच्छा लिखते हैं

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । अनु जी ।

मन की वीणा said...

बहुत शानदार प्रस्तुति।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । मन की वीणा जी ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बेहतरीन ग़ज़ल

Manisha Goswami said...

बहुत ही प्रेरणादायक प्रस्तुति🙏

अनीता सैनी said...

वाह!बहुत बढ़िया सर।
सादर

muhammad solehuddin said...

अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
free backlink click my profile

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...