श्याम रॅंग को रगड़-रगड़ के यूॅं गोरा कीजै ।।
बहती गंगा में हाथ धो-धो के लोरा कीजै ।।
सिलके रखते हो होंठ , मुॅंह भी बिसूरे रहते ,
वक़्त-बेवक़्त खुलके दाॅंत निपोरा कीजै ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
4 comments:
हे हे हे
बहुत खूब।
पधारें धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
😄😄बहुत बढ़िया हास्य रस आदरनीय कविवर 😃😃😃🙏🙏
शुक्रिया ❤️🙏 Rohitash Ghotala जी ।
धन्यवाद 🙏 रेणु जी ।
Post a Comment