Thursday, March 3, 2022

मुक्तक









श्याम रॅंग को रगड़-रगड़ के यूॅं गोरा कीजै ।।

बहती गंगा में हाथ धो-धो के लोरा कीजै ।।

सिलके रखते हो होंठ , मुॅंह भी बिसूरे रहते ,

वक़्त-बेवक़्त खुलके दाॅंत निपोरा कीजै ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति


4 comments:

Rohitas Ghorela said...

हे हे हे
बहुत खूब।

पधारें धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

रेणु said...

😄😄बहुत बढ़िया हास्य रस आदरनीय कविवर 😃😃😃🙏🙏

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

शुक्रिया ❤️🙏 Rohitash Ghotala जी ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद 🙏 रेणु जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...