Wednesday, January 15, 2020

गीत : 54 - शिकस्ता दिल


यक़ीनन है शिकस्ता दिल जवाँ होकर भी वो वर्ना ।।
न कहता नौजवानों से मोहब्बत-इश्क़ से बचना ।।1।।
ख़ुुदा ने जब तुम्हें बख़्शी है सूरत चाँद से प्यारी ;
तुम्हारा जिस्म जैसे राजधानी की है फुलवारी ;
तुम्हें सिंगार से ज्यादा है फबती सादगी फिर क्या -
मुनासिब है यूँ ही सजने में ज़ाया वक़्त को करना ?2?
यक़ीनन है शिकस्ता दिल जवाँ होकर भी वो वर्ना ,
न कहता नौजवानों से मोहब्बत-इश्क़ से बचना ।।
अगर तेरा मोहब्बत में जो पड़ने का इरादा है ;
तो सुन ले सब शराबों से कहीं इसमें ज़ियादा है ;
अगर चढ़ जाए तो फिर ये किसी सूरत नहीं उतरे ,
वो कहता है नशा-ए-इश्क़ बिलकुल भी नहीं चखना ।।3।।
यक़ीनन है शिकस्ता दिल जवाँ होकर भी वो वर्ना ,
न कहता नौजवानों से मोहब्बत-इश्क़ से बचना ।।
मोहब्बत लाज़िमी इस उम्र में सबको कहानी में ;
लगे है इश्क़ ही जैसे हो सब कुछ नौजवानी में ;
मगर कहता है जो तो क्या ग़लत कहता है वो बोलो ?
"कभी मत कमसिनी में आशिक़ी के फेर में पड़ना ।।"4।।
यक़ीनन है शिकस्ता दिल जवाँ होकर भी वो वर्ना ,
न कहता नौजवानों से मोहब्बत-इश्क़ से बचना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

4 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3582 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।








धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । दिलबाग विर्क जी ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और सार्थक

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । शास्त्री जी ।

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