हो साल नया सब को मुबारक़ न कहूँगा !!
इस बार में नववर्ष का स्वागत न करूँगा ।।
रंजीदा हूँ , ग़मगीन हूँ , मातम से भरा हूँ ,
बाहर से लगूँ ज़िंदा पर अंदर से मरा हूँ ,
महफ़िल को लगाने दो ठहाकों पे ठहाके ,
मैं तो मज़ाक़ो-मस्ख़री पे भी न हँसूँगा ।।
हो साल नया सब को मुबारक़ न कहूँगा !!
इस सन में यूँ तक़्लीफ़ उठाई है सुनो तो ,
बारिश में पतँग जैसे उड़ाई है सुनो तो ,
उम्मीद की अब भी न किरन सामने मेरे ,
बेरहम मुश्क़िलों से मैं कब तक के लडूँगा ।।
हो साल नया सब को मुबारक़ न कहूँगा !!
सूरत में किसी भी वो किसी हाल में तय थी ,
जिस ख़्वाब की ताबीर इसी साल में तय थी ,
ख़त्म उसकी मियाद हो गई जब कुछ न बचा रे ,
अरमाँ मैं भला क्या कोई अब पाल सकूँगा ?
हो साल नया सब को मुबारक़ न कहूँगा !!
इस बार में नववर्ष का स्वागत न करूँगा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
आगत का स्वागत करने की परम्परा सदियों से
यही कहेंगे नववर्ष मंगलमय हो आपका!
आपका भी । धन्यवाद ।
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