Sunday, September 2, 2018

ग़ज़ल : 267 - तोप से बंदूक




तोप से बंदूक से इक तीर हो बैठा ।।
नौजवानी में ही साठा पीर हो बैठा ।।
चुप रहा तो बज गया दुनिया में गूँँगा वो ,
कह उठा तो सीधे ग़ालिब-मीर हो बैठा ।।
बनके इक सय्याद रहता था वो जंगल में ,
आके दर्याओं में माहीगीर हो बैठा ।।
हिज़्र में दिन-रात सोते-जागते फिरते ,
रटते-रटते हीर...राँँझा हीर हो बैठा ।।
जो कहा करता था इश्क़ आज़ाद करता है ,
उसके ही पाँँवों की वह ज़ंजीर हो बैठा ।।
इस क़दर उसको सताया था ज़माने ने ,
वह छड़ी से लट्ठ फिर शमशीर हो बैठा ।।
उसने मर्यादा को अपनाया तो सच मानो ,
वह निरा रावण...खरा रघुवीर हो बैठा ।।
( साठा=साठ वर्ष का ,पीर=वृद्ध , सय्याद=चिड़ीमार ,
दर्या=नदी ,माहीगीर=मछली पकड़ने वाला ,हिज़्र=विरह ,
शमशीर=तलवार ,रघुवीर=रामचंद्र )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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