मुझसे तुम दो ही पल भर सटी रह गयीं ।।
सारी दुनिया की आँखें फटी रह गयीं ।।
मैं गुटक कर ख़ुशी कद्दू होता गया ,
तुम चबा फ़िक्र को बरबटी रह गयीं ।।
चाहकर बन सका मैं न सर्कस का नट ,
तुम नहीं चाह कर भी नटी रह गयीं ।।
और सब कुछ गया भूल मैं अटपटी ,
चंद बातें तुम्हारी रटी रह गयीं ।।
इक भी दुश्मन न अपना बचा जंग में ,
इस दफ़ा लाशें बस सरकटी रह गयीं ।।
तेरे हाथों में लगने की ज़िद पर अड़ी ,
मेहँंदियाँ कितनी ही बस बटी रह गयीं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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