Tuesday, October 22, 2024

चश्मा उतारकर देखो

 

नाव से और न पुल से बल्कि कभी , वो नदी तैर पारकर देखो ।।

ख़ुद पे जो गर्द का मुलम्मा है , वो खुरचकर बुहारकर देखो ।।

मन की ऑंखों से दूर से भी साफ़ , अपना दीदार वो कराता है ,

उसको जी भरके देखना हो तो , अपना चश्मा उतारकर देखो ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...