नाव से और न पुल से बल्कि कभी , वो नदी तैर पारकर देखो ।।
ख़ुद पे जो गर्द का मुलम्मा है , वो खुरचकर बुहारकर देखो ।।
मन की ऑंखों से दूर से भी साफ़ , अपना दीदार वो कराता है ,
उसको जी भरके देखना हो तो , अपना चश्मा उतारकर देखो ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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