Tuesday, September 17, 2024

ग़ज़ल

 


लगे सूरत से बस मासूम वैसे ख़ूब शातिर है ।।

वो दिखता पैरहन से भर मुसल्माॅं वर्ना काफ़िर है ।।

तुम्हें लगता नहीं करता वो ऐसे-वैसे कोई काम ,

हक़ीक़त में वो बस ऐसे ही कामों का तो माहिर है ।।

मेरी नज़रों में ऐसा ख़ुदग़रज़ अब तक नहीं आया ,

जो जब भी कुछ करे तो बस करे अपनी ही ख़ातिर है ।।

वो इक चट्टान का लोहे सरीखा था कभी पत्थर ,

मैं हैराॅं हूॅं वही गुमनाम अब मशहूर शाइर है ।।

किसी सूरत में उसका दिल न मुझ पर आएगा फिर भी ,

मेरा ये दिल उसी उस पर चले जाने को हाज़िर है ।।

वो रोज़ाना इरादा भागने का शहर का  करता ,

ये उस जंगल के गीदड़ का यक़ीनन वक़्त ए आख़िर है ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


Sunday, September 15, 2024

ग़ज़ल

 








न होता तू कोई अजगर घिसटता केंचुआ होता ।।

तेरे पीछे हिलाता दुम न फिर मैं घूमता होता ।।

जो तू होता बला का ख़ूबसूरत तो यक़ीनन बस ,

तुझे कैसे करूॅं हासिल यही सब सोचता होता ।।

न होती तुझको दिलचस्पी मेरी बातों में तो तुझसे , 

मुख़ातिब होता भी तो लब न अपने खोलता होता ।।

अगर हक़ दे दिया होता मुझे दीदार का तूने ,

तो क्यों छुपकर दरारों से तुझे मैं देखता होता ।।

न दी होती जो तूने बद्दुआ बर्बाद होने की ,

मैं क्यों आकर किनारे पर नदी के डूबता होता ?

न बदले होंगे तेरे वो बुरे हालात ही वर्ना ,

अभी तक तो तू सच मिट्टी से सोना बन गया होता ।।

न की होती जो तूने दम ब दम धोखाधड़ी मुझसे ,

मैं अपनी ज़िंदगी रहते न तुझे बेवफ़ा होता ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Thursday, September 12, 2024

ग़ज़ल

 

ग़म न उतना उनके दिल से दूर होने का हुआ ।।

ऑंख से गिरके जो चकनाचूर होने का हुआ ।।

अपने आज़ू-बाज़ू वाले ही न पहचानें हैं जब ,

फिर कहाॅं मतलब कोई मशहूर होने का हुआ ?

एक उम्दा बन गया शा'इर यही बस फ़ाइदा ,

इश्क़ में उनके मेरे रंजूर होने का हुआ ।।

और कुछ होता तो शायद मैं नहीं बनता शराब ,

मेरा ये अंजाम तो अंगूर होने का हुआ ।।

ख़ाकसारी ने किया जितना मेरा नुकसान सच ,

उससे बेहद कम मुझे मग़रूर होने का हुआ !!

जो न करना था किया , पाना था जो वो खो दिया ,

इस क़दर घाटा मेरे मजबूर होने का हुआ ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

 


Sunday, September 8, 2024

ग़ज़ल

 


                                    बड़े प्यार से प्यार अगर कीजिएगा , 

तो पल भर नहीं उम्र भर कीजिएगा।।

ख़ुदारा ख़बर कुछ भी उनकी मिले तो ,

मुझे सबसे पहले ख़बर कीजिएगा ।।

बमुश्किल निकाला है तुमको नज़र से ,

न हॅंसते हुए दिल में घर कीजिएगा ।।

नहीं चाहकर भी तुम्हें चाह बैठूॅं ,

कुछ अपना यूॅं मुझ पर असर कीजिएगा ।।

भले सख़्त नफ़रत से लेकिन क़सम से ,

कभी मेरी जानिब नज़र कीजिएगा ।।

चिकनाई पर से गुज़रना पड़े तो ,

कभी पाॅंव अपने न पर कीजिएगा ।।

मिली है जो रो-रो के ये ज़िंदगी तो ,

इसे हॅंसते-हॅंसते बसर कीजिएगा ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...