ज़मज़म ही चाहिए न सादा आब चाहिए ।।
गंगा का जल न रूद ए चनाब चाहिए ।।
बेशक़ तड़प रहा हूॅं प्यास से मगर मुझे ,
दो घूॅंट ही सही फ़क़त शराब चाहिए ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-04-2022) को चर्चा मंच "गुलमोहर का रूप सबको भा रहा" (चर्चा अंक 4399) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
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