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Friday, July 15, 2022
ऑंधियों के हवाले
Tuesday, April 12, 2022
प्यास
ज़मज़म ही चाहिए न सादा आब चाहिए ।।
गंगा का जल न रूद ए चनाब चाहिए ।।
बेशक़ तड़प रहा हूॅं प्यास से मगर मुझे ,
दो घूॅंट ही सही फ़क़त शराब चाहिए ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
Saturday, April 9, 2022
अस्लीयत
हाॅं ! बहुत लोग न पर सच में चंद होते हैं ।।
सर झुकाकर भी जो ख़ासे बुलंद होते हैं ।।
कितने ही लगते हैं सूरत से अहमक़ ओ नादाॅं ,
अस्लीयत में जो बड़े अक़्लमंद होते हैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Friday, April 1, 2022
इन्आम
ज़ुबाॅं भर से देते न वो इस ज़माने को पैग़ाम उम्दा ।।
वो ताला लगा मुॅंह पे करके दिखाते हैं हर काम उम्दा ।।
हाॅं अक्सर नहीं वो हमेशा ही करते हैं ऐसा कि सब ही ,
यही चाहें दें अपने हाथों उन्हें कोई इन्आम उम्दा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Thursday, March 3, 2022
मुक्तक
श्याम रॅंग को रगड़-रगड़ के यूॅं गोरा कीजै ।।
बहती गंगा में हाथ धो-धो के लोरा कीजै ।।
सिलके रखते हो होंठ , मुॅंह भी बिसूरे रहते ,
वक़्त-बेवक़्त खुलके दाॅंत निपोरा कीजै ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
