Saturday, June 9, 2018

मुक्त मुक्तक : 886 - रिक्शे सी ज़िन्दगी......


अजगर जहाँ में मैं भी अब बन गरुड़ रहा हूँ ।।
मंज़िल पे रख निगाहें कहुँँ भी न मुड़ रहा हूँ ।।
रिक्शे सी ज़िन्दगी को कर दूँ मैं कार  कैसे ?
ये सोच सोच पंखों के बिन ही उड़ रहा हूँ ।। 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...