Thursday, June 28, 2018

ग़ज़ल : 260 - कैसे-कैसे लोग



   कैसे-कैसे लोग दुनिया में पड़े हैं ।।
   सोचते पाँवों से सिर के बल खड़े हैं ।।
   आइनों के वास्ते अंधे यहाँँ , वाँ
   गंजे कंघों की खरीदी को अड़े हैं ।।
   जिस्म पर खूब इत्र मलकर चलने वाले ,
   कुछ सड़े अंडों से भी ज्यादा सड़े हैं ।।
   बस तभी तक जिंदगी ख़ुशबू की समझो ,
   जब तलक गहराई में मुर्दे गड़े हैं ।।
   देखने में ख़ूबसूरत इस जहाँँ के ,
   आदमी कुछ बेतरह चिकने घड़े हैं ।।
   सिर न जब तक कट गिरा हम दम से पूरे ,
   ज़िंदगी से जंग रोज़ाना लड़े हैं ।।
   -डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...