कैसे-कैसे लोग दुनिया में पड़े हैं ।।
सोचते पाँवों से सिर के बल खड़े हैं ।।
आइनों के वास्ते अंधे यहाँँ , वाँ
गंजे कंघों की खरीदी को अड़े हैं ।।
जिस्म पर खूब इत्र मलकर चलने वाले ,
कुछ सड़े अंडों से भी ज्यादा सड़े हैं ।।
बस तभी तक जिंदगी ख़ुशबू की समझो ,
जब तलक गहराई में मुर्दे गड़े हैं ।।
देखने में ख़ूबसूरत इस जहाँँ के ,
आदमी कुछ बेतरह चिकने घड़े हैं ।।
सिर न जब तक कट गिरा हम दम से पूरे ,
ज़िंदगी से जंग रोज़ाना लड़े हैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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