बन सका चिकना न सब कुछ खुरदरा बनवा लिया ।।
सबने ही मीनार हमने चौतरा बनवा लिया ।।1।।
जब बना पाए न हम अपना मकाँ तो जीते जी ,
क़ब्र खुदवा अपनी अपना मक़्बरा बनवा लिया ।।2।।
ज़ुर्म क्या गर अपनी बेख़बरी में अपने घर ही पर ,
अपने बावर्ची से हलवा चरपरा बनवा लिया ।।3।।
उन से खिंच कर उनकी हद में जा न पहुंँचेंं सोचकर ,
हमने अपने आसपास इक दायरा बनवा लिया ।।4।।
प्यास को अपनी बुझाने घर न गंगा ला सके ,
इसलिए आंँगन में छोटा पोखरा बनवा लिया ।।5।।
हुक़्म के उसके ग़ुलाम हम इस क़दर थे इक दफ़ा,
उसने दी चोली तो हमने घाघरा बनवा लिया ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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