जिस्म धन-दौलत सा जोड़ा जा रहा है ।।
और दिल पापड़ सा तोड़ा जा रहा है ।।
दौड़ता है पीछे-पीछे मेरा कछुआ ,
आगे-आगे उनका घोड़ा जा रहा है ।।
पहले ख़ुद डाला गया उस रास्ते पर ,
अब उसी से मुझको मोड़ा जा रहा है ।।
तोड़कर फिर काटकर हम नीबुओं को ,
मीठे गन्ने सा निचोड़ा जा रहा है ।।
उनका ग़म अब धीरे-धीरे , धीरे-धीरे ,
थोड़ा-थोड़ा , थोड़ा-थोड़ा जा रहा है ।।
वो हुए नाकाम अपनी वज्ह से ही ,
ठीकरा औरों पे फोड़ा जा रहा है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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