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Friday, March 7, 2025
ग़ज़ल
Tuesday, February 25, 2025
ग़ज़ल
सच कहता हूॅं हर क्षण , प्रतिपल ,
मैं हूॅं तेरी प्रीत में पागल ।।
तेरी , मेरी क्या तुलना ? तू ,
स्वर्ण खरा मैं केवल पीतल ।।
मैं भी बजता , बजती तू भी ,
पर मैं घण्टा , तू है पायल ।।
मैं भी सबकी प्यास बुझाता ,
पर तू मदिरा , मैं सादा जल ।।
तेरा मेरा मेल कहाॅं ? तू ,
नील नदी मैं थार मरुस्थल ।।
माना मैं भी पुष्प हूॅं पर सच ,
मैं गुड़हल तू रक्तिम पाटल ।।
मैं गाता भी काक लगूॅं तू ,
चीखे भी तो लगती कोयल ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
Sunday, February 23, 2025
ग़ज़ल
इसमें अभिलाषाओं की कुछ भस्म भर है ।।
आजकल मेरा हृदय परित्यक्त घर है ।।
पहले मनुजों के भी थे रहवास इस पर ,
अब धरा देवों या दनुजों का नगर है ।।
हाॅं मेरे दृग शुष्क मरुथल ही लगें पर ,
मन निरंतर अश्रुओं से तर ब तर है ।।
मुझसे क्यों ताली बजाने को कहो जब ,
जानते हो मेरा केवल एक कर है ?
उनके आगे मुॅंह नहीं खुलता किसी का ,
मेरे सम्मुख मूक भी होता मुखर है !!
हाॅं ! कला ही से न सबका पेट भरता ,
पर नहीं अभिशाप ये , ये एक वर है ।।
रोके क्या कर लेगा कोई जानकर भी ,
यह कि जीवन अंततोगत्वा समर है ?
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
