जुगनुओं का भी न जो दीदार कर पाया ,
वो चला है सूर्य से ऑंखों को करने चार !!
इस तरफ़ से उस तरफ़ पुल से न जो पहुॅंचा ,
तैरकर सागर को वो करने चला है पार !!
सब ही कहते हैं कि वो ये कर न पाएगा ,
दो ही दिन में घर को बुद्धू लौट आएगा ,
बस मुझे ही क्यों न जाने पर हक़ीक़त में ,
फ़त्ह पर उसकी न होता शक़ तुनक इस बार !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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