Sunday, December 1, 2024

ग़ज़ल


 










पल को लगता है भलाई नहीं भलाई में ।।

पल में लगता है बुराई तो है बुराई में ।।

उनके तुम,उनके हम,उनके वो,दुनिया भी उनकी ,

अपना तो एक भी अपना नहीं ख़ुदाई में ।।

छू रहीं अर्श को पनडुब्बियाॅं भी उनकी सच ,

अपने राकेट भी औंधे पड़े हैं खाई में ।।

सिर हमारा है ये कमअक़्ल पीठ गदहे की ,

काम आता है फ़क़त बोझ की ढुलाई में ।।

आम ओ आसान हुई जाए दिन ब दिन अब तो ,

अब क़सम से न रहा लुत्फ़ आश्नाई में ।।

काट देते न ज़ुबाॅं तुम हमारी जो पहले ,

हमको मिलती न महारत क़लम घिसाई में ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


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