पल को लगता है भलाई नहीं भलाई में ।।
पल में लगता है बुराई तो है बुराई में ।।
उनके तुम,उनके हम,उनके वो,दुनिया भी उनकी ,
अपना तो एक भी अपना नहीं ख़ुदाई में ।।
छू रहीं अर्श को पनडुब्बियाॅं भी उनकी सच ,
अपने राकेट भी औंधे पड़े हैं खाई में ।।
सिर हमारा है ये कमअक़्ल पीठ गदहे की ,
काम आता है फ़क़त बोझ की ढुलाई में ।।
आम ओ आसान हुई जाए दिन ब दिन अब तो ,
अब क़सम से न रहा लुत्फ़ आश्नाई में ।।
काट देते न ज़ुबाॅं तुम हमारी जो पहले ,
हमको मिलती न महारत क़लम घिसाई में ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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