नाव से और न पुल से बल्कि कभी , वो नदी तैर पारकर देखो ।।
ख़ुद पे जो गर्द का मुलम्मा है , वो खुरचकर बुहारकर देखो ।।
मन की ऑंखों से दूर से भी साफ़ , अपना दीदार वो कराता है ,
उसको जी भरके देखना हो तो , अपना चश्मा उतारकर देखो ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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नाव से और न पुल से बल्कि कभी , वो नदी तैर पारकर देखो ।।
ख़ुद पे जो गर्द का मुलम्मा है , वो खुरचकर बुहारकर देखो ।।
मन की ऑंखों से दूर से भी साफ़ , अपना दीदार वो कराता है ,
उसको जी भरके देखना हो तो , अपना चश्मा उतारकर देखो ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
दरारों से ज्यों वर्जित दृश्य ऑंखें फाड़ तकते हैं ।।
यों ज्यों कोई व्यक्तिगत दैनंदनी चोरी से पढ़ते हैं ।।
कि ज्यों कोई परीक्षा में नकल करने से डरता है ,
कुछ ऐसे ढंग से एकांत में हम उससे मिलते हैं ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...