Tuesday, October 22, 2024

चश्मा उतारकर देखो

 

नाव से और न पुल से बल्कि कभी , वो नदी तैर पारकर देखो ।।

ख़ुद पे जो गर्द का मुलम्मा है , वो खुरचकर बुहारकर देखो ।।

मन की ऑंखों से दूर से भी साफ़ , अपना दीदार वो कराता है ,

उसको जी भरके देखना हो तो , अपना चश्मा उतारकर देखो ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

Monday, October 21, 2024

चश्मा

 

जलते हुए मरुस्थल लगते थे मुझको गीले ।।
गहरे से गहरे गड्ढे दिखते थे उॅंचे टीले ।।
सारे हरे - हरे ही चश्मे से दिख रहे थे ,
चश्मा उतारकर जब देखा तो सब थे पीले ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


Friday, October 4, 2024

मुक्तक

 दरारों से ज्यों वर्जित दृश्य ऑंखें फाड़ तकते हैं ।।

यों ज्यों कोई व्यक्तिगत दैनंदनी चोरी से पढ़ते हैं ।।

कि ज्यों कोई परीक्षा में नकल करने से डरता है ,

कुछ ऐसे ढंग से एकांत में हम उससे मिलते हैं ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...