ऑंधियों के हवाले हो ख़ुद को , बनके पत्ता उड़ाए मैं जाऊॅं ।।
यूॅं तो उठते नहीं फूल तक भी , पत्थर अब सर उठाए मैं जाऊॅं ।।
ऐसे हालात हैं पेश मेरे , मुझसे सब छिन गए ऐश मेरे ,,
वाॅं न चाहूॅं जहाॅं भूल जाना , ग़म में भर सर झुकाए मैं जाऊॅं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
सुन्दर विचार
धन्यवाद 🙏
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