जो बेमौत मारे गए या मरे ख़ुद ,
उन्हें तुम किसी हक़ से बोलो न अहमक़ !!
गर इतना जो हो जाता दुनिया में शायद ,
ज़मीं ही फिर हो जाती जन्नत बिलाशक़ !!
नदी-कूप पर होता प्यासों का क़ब्ज़ा ,
ग़रीबों , फ़क़ीरों का दौलत पे कुछ हक़ ,
जो होता ज़रूरी वो पास होता सबके ,
तो फिर ख़ुदकुशीे क्यों कोई करता नाहक़ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-07-2019) को "बाकी बची अब मेजबानी है" (चर्चा अंक- 3405) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद । शास्त्री जी ।
बहुत सुन्दर
धन्यवाद । Onkar जी ।
Post a Comment