■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
Wednesday, July 31, 2019
Monday, July 29, 2019
Sunday, July 28, 2019
Thursday, July 25, 2019
Sunday, July 21, 2019
मुक्तक : 906 - बोलो न अहमक़
जो बेमौत मारे गए या मरे ख़ुद ,
उन्हें तुम किसी हक़ से बोलो न अहमक़ !!
गर इतना जो हो जाता दुनिया में शायद ,
ज़मीं ही फिर हो जाती जन्नत बिलाशक़ !!
नदी-कूप पर होता प्यासों का क़ब्ज़ा ,
ग़रीबों , फ़क़ीरों का दौलत पे कुछ हक़ ,
जो होता ज़रूरी वो पास होता सबके ,
तो फिर ख़ुदकुशीे क्यों कोई करता नाहक़ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Saturday, July 20, 2019
Friday, July 19, 2019
मुक्तक : 904 - फाड़कर
पथरीली सरज़मीं पर
कर करके गहरे गड्ढे ,
फिर से न आएँ बाहर
ऐसे मैं गाड़कर रे।।
हरगिज़ न कोई दर्जी
फिर से जो सिल सके ,
कुछ इस तरह के टुकड़े
टुकड़ों में फाड़कर रे ।।
कुछ आपके वहाँ का ,
कुछ मेरे भी यहाँ का ,
जानूँ न कैसा-कैसा ,
जाने कहाँ-कहाँ का ?
आँखों से अपनी चुन-चुन
देखो मैं बेच घोड़े ,
सपनों का सारा कचरा
सोता हूँ झाड़ कर रे।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Sunday, July 14, 2019
Friday, July 12, 2019
Thursday, July 11, 2019
Sunday, July 7, 2019
ग़ज़ल : 275 - गुलबदन
काँटे न थे हमेशा से , थे इक चमन कभी ।।
पत्थर से जिस्म वाले हम , थे गुलबदन कभी ।।
महफ़िल में भी रहे हम आके यक़्कोतन्हा आज ,
जो अपने आप में थे एक अंजुमन कभी ।।
चंद हादसों ने सच में क्या से क्या बना दिया ,
जैसे हैं आज वैसे तो न थे अपन कभी ।।
मिट्टी के ढेले बन के रह गए हैं आजकल ,
आता नहीं यक़ीं कि सच थे हम रतन कभी ।।
बारिश के रूठने से बन के नाली रह गए ,
हम भी थे दसियों साल पहले तक जमन कभी ।।
पीरी में सारी शोख़ियों ने अलविदा कहा ,
जोबन में हम में भी ग़ज़ब था बाँकपन कभी ।।
( यक़्कोतन्हा = नितांत अकेला , जमन = यमुना नदी , पीरी = वृद्धावस्था )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Saturday, July 6, 2019
मुक्तक : 900 - ग़म का छुपाना
किसी गिर पड़े को झपट कर उठाना ।।
किसी ज़ख़्म खाए को मरहम लगाना ।।
ये आदत तुम्हारी नहीं ताज़ा-ताज़ा ,
है ये शौक़ तुममें निहायत पुराना ।।
हमें सब पता है कि क्या माज़रा है ,
कि क्या मग़्ज़े सर में क्या दिल में भरा है ?
तुम्हारा ये हर वक़्त का मुस्कुराना ,
हमें सिर्फ़ लगता है ग़म का छुपाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
