Sunday, June 16, 2019

पिताजी


पाँव मुझ लँगड़े के दोनों , हाथ मुझ करहीन के ,
आँख मुझ अंधे की दो , बहरे के दोनों कान हैं ।।
यदि कोई मुझसे ये पूछे , हैं पिताजी क्या तेरे ?
झट से कह दूँगा नहीं कुछ किंतु मेरे प्रान हैं ।।
माँ की महिमा तो जगत में व्याप्त है आरंभ से ,
किंतु क्या माहात्म्य कम है मातृ सम्मुख पितृ का ?
यदि पिताजी पर कोई मुझसे कहे दो शब्द लिख ,
सच तुरत लेकर कलम लिख दूँगा मैं भगवान हैं ।।
- डॉ. हीरालाल प्रजापति

3 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद , शास्त्री जी ।

अनीता सैनी said...

लाजबाब सृजन आदरणीय
सादर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद Anita saini जी ।

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