Thursday, April 11, 2019

कुल्फ़ी


कभी चूसते रहे तो कभी काटते रहे ।।
दाँतों से बर्फ़-टुकड़ों को बाटते रहे ।।
गर्मीे में कैसे पाएँ ठंडक ये सोचकर ,
कुल्फ़ी को ले ज़ुबाँ पर हम चाटते रहे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! शास्त्री जी ।

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