रहूँगा मैं नहीं तैयार खाने
मार होली में ॥
लगा फटकार निसदिन पर मुझे चुमकार
होली में ॥
तू मुझसे दूर रहले साल भर भी
मत मुझे तक तू ,
लगा कस – कस गले मुझको मगर हर
बार होली में ॥
न जाने क्या हुआ मुझको अरे इस
बार होली में ?
मैं चंगा था यकायक पड़ गया बीमार
होली में ॥
हसीना इक मैं जैसी चाहता था
सामने आकर ,
लगी करने जो मेरा एकटक दीदार
होली में ।
हमेशा ही रहा करता हूँ मैं तैयार
होली में ॥
अगर चाहे तो तू तेरी क़सम इस
बार होली में ॥
बहुत लंबी , बहुत चौड़ी , बहुत ऊँची गिरा दे
वो –
हमारे दरमियाँ है जो खड़ी दीवार
होली में ॥
भले काँटों का ही पहना तू लेकिन
हार होली में ॥
दिखावे को ही कर लेकिन फ़क़त कर
प्यार होली में ॥
शराबों के नशे कितनी पियूँ चढ़कर
उतर जाते ,
मुझे अपनी निगाहों की पिलादे
यार होली में ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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