Wednesday, March 15, 2017

*मुक्त-मुक्तक : 867 - दर खुला पिंजरे का रख



मुझसे बंदर को कहे कूदूँ न मैं , उछलूँ न मैं !
दर खुला पिंजरे का रख बोले कभी निकलूँ न मैं !
बर्फ़ हूँ यह जानकर दुश्मन मेरा मुझको पकड़ ,
धूप में रखकर ये कहता है मुझे पिघलूँ न मैं !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...