Thursday, June 4, 2015

मुक्तक : 723 ( B ) पंखों की रज़ा

लँगड़ों को पैरों , लूलों को सिवाय हाथों के ॥
बहरों को कानों , अंधों को सिवा दो आँखों के ॥
मुझ परकटे परिंदे को है पंखों की रज़ा ,
जैसे मरों की चाह क्या अलावा साँसों के ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...