Sunday, August 3, 2014

मुक्तक : 594 - इक सिवा उसके कहीं


इक सिवा उसके कहीं दिल आ नहीं सकता ॥
है ये पागलपन मगर अब जा नहीं सकता ॥
क्या करूँ मज्बूर हूँ अपनी तमन्ना से ?
फिर भी तो चाहूँ उसे जो पा नहीं सकता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...