दोस्त कब सौ
हज़ार करना है ?
इक दो बस ग़म
गुसार करना है ॥
जिनसे नज़रें
मिलाना हो मुश्किल ,
उनसे आँखों
को चार करना है ॥
इस ज़माने में
बस मोहब्बत के ,
और सब कुछ उधार
करना है ॥
सब कहें प्यार
और वो भी हम ,
अब तो हमको
भी प्यार करना है ॥
ख़ुद को चाहे
न हम सुधार सकें ,
दूसरों का सुधार
करना है ॥
एक सुख की किनार पाने को ,
कितने दुक्खों
को पार करना है ?
ज़िंदगी को चलाए
रखने को ,
कोई तो रोज़गार
करना है ॥
बाद मरने के
भी रहें ज़िंदा ,
काम कुछ यादगार
करना है ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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