Sunday, December 15, 2024

सूर्य

 











जुगनुओं का भी न जो दीदार कर पाया ,

वो चला है सूर्य से ऑंखों को करने चार !!

इस तरफ़ से उस तरफ़ पुल से न जो पहुॅंचा ,

तैरकर सागर को वो करने चला है पार !!

सब ही कहते हैं कि वो ये कर न पाएगा ,

दो ही दिन में घर को बुद्धू लौट आएगा ,

बस मुझे ही क्यों न जाने पर हक़ीक़त में ,

फ़त्ह पर उसकी न होता शक़ तुनक इस बार !! 

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Monday, December 2, 2024

आदमी

 



















हाथियों जैसा न बन , मत चींटियों सा भी ;

बाज भी मत बन , न बन , तू तितलियों सा भी ;

साॅंप मत बन , और न बन , तू केंचुए जैसा ;

गाय भी मत बन , न बनना , तेंदुए जैसा ;

मत कभी बनना तू मछली , या मगर कोई ;

ना तू बनना देवता , ना जानवर कोई ;

सीखले ये बात , औरों को भी ये सिखला ,

आदमी है तू ! तो बस ; बन आदमी दिखला ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


Sunday, December 1, 2024

ग़ज़ल


 










पल को लगता है भलाई नहीं भलाई में ।।

पल में लगता है बुराई तो है बुराई में ।।

उनके तुम,उनके हम,उनके वो,दुनिया भी उनकी ,

अपना तो एक भी अपना नहीं ख़ुदाई में ।।

छू रहीं अर्श को पनडुब्बियाॅं भी उनकी सच ,

अपने राकेट भी औंधे पड़े हैं खाई में ।।

सिर हमारा है ये कमअक़्ल पीठ गदहे की ,

काम आता है फ़क़त बोझ की ढुलाई में ।।

आम ओ आसान हुई जाए दिन ब दिन अब तो ,

अब क़सम से न रहा लुत्फ़ आश्नाई में ।।

काट देते न ज़ुबाॅं तुम हमारी जो पहले ,

हमको मिलती न महारत क़लम घिसाई में ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...