किस मज्बूरी के चलते यह बात हुई है ?
जो अंधों के आगे नचते रात हुई है ।।
हैराँ हूँ सुनकर इक बुलबुल के हाथों कल ,
अंबर में बाज़ों की भारी मात हुई है ।।
झूठ है सिर्फ़ अमीर ही बख्श़िश दें जग में , क्या
मँगतों के हाथों न कभी ख़ैरात हुई है ?
भूखे सिंह को ज्यों बकरी भी दिखती हिरनी ,
उनकी आँखों में यूँ मेरी औक़ात हुई है ।।
रेगिस्तान तरसते रोते याँ बदली को ,
वाँ दिन-रात समंदर में बरसात हुई है ।।
तुम क्या जानो हम क्यों ज़ह्र पिएँ रोज़ाना ?
हम ही जानें हमको मौत हयात हुई है ।।
वे दोनों गाँधीवादी हैं पर उनमें भी ,
मेरे आगे अक़्सर मुक्का-लात हुई है !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
बहुत बहुत धन्यवाद ! शास्त्री जी ।
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