Thursday, August 9, 2018

गीत : 49 - दिल जोड़ने चले हो



दिल जोड़ने चले हो ठहरो ज़रा संँभलना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।।
मासूमियत की तह में रखते हैं बेवफ़ाई ।
मतलब परस्त झूठी करते हैं आश्नाई ।
राहे वफ़ा में देखो यूँँ ही क़दम न धरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।। 
रुस्वाई, बेवफ़ाई, दर्दे जुदाई वाली ।
गुंजाइशें हैं इसमें ख़ूँ की रुलाई वाली ।
आसाँ नहीं है हरगिज़ इस राह से गुजरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।। 
मुमकिन नहीं मोहब्बत की जंग में बताना ।
मारेंगे बाज़ी आशिक़ या संगदिल ज़माना ।
आग़ाज़ कर रहे हो अंजाम से न डरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।। 
आग़ाज़े आशिक़ी में ख़तरा नज़र न आए ।
अंजाम ज़िंदगी पर ऐसा असर दिखाए ।
नाकामे इश्क़ को कई कई बार होता मरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।। 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...