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Thursday, August 16, 2018
Sunday, August 12, 2018
ग़ज़ल : 266 - ढोल बजाकर
आँसू उनकी आंँखों का चश्मा है गहना है ।।
जिन लोगों का काम ही रोना रोते रहना है ।।
झूठ है रोने से होते हैं ग़म कम या फिर ख़त्म ,
ढोल बजाकर ये सच दुनिया भर से कहना है ।।
ख़ुशियों का ही जश्न मनाया जाता महफ़िल में ,
दर्द तो जिसका है उसको ही तनहा सहना है ।।
क्या मतलब मज़्बूती छत दीवार को देने का ,
आख़िर बेबुनियाद घरों को जल्द ही ढहना है। ।।
ज्यों ताउम्र हिमालय का है काम खड़े रहना ,
यूँँ ही गंगा का मरते दम तक बस बहना है ।।
क्यों नज़रें ना गाड़ें तेरे तन पर अंधे भी ,
क्यों तूने बारिश में झीना जामा पहना है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Thursday, August 9, 2018
गीत : 49 - दिल जोड़ने चले हो
दिल जोड़ने चले हो ठहरो ज़रा संँभलना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।।
मासूमियत की तह में रखते हैं बेवफ़ाई ।
मतलब परस्त झूठी करते हैं आश्नाई ।
राहे वफ़ा में देखो यूँँ ही क़दम न धरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।।
रुस्वाई, बेवफ़ाई, दर्दे जुदाई वाली ।
गुंजाइशें हैं इसमें ख़ूँ की रुलाई वाली ।
आसाँ नहीं है हरगिज़ इस राह से गुजरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।।
मुमकिन नहीं मोहब्बत की जंग में बताना ।
मारेंगे बाज़ी आशिक़ या संगदिल ज़माना ।
आग़ाज़ कर रहे हो अंजाम से न डरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।।
आग़ाज़े आशिक़ी में ख़तरा नज़र न आए ।
अंजाम ज़िंदगी पर ऐसा असर दिखाए ।
नाकामे इश्क़ को कई कई बार होता मरना ।।
टूटे हैं दिल हज़ारों इस दिल्लगी में वर्ना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
