उसको रोने का यक़ीनन हर सबब पुख़्ता मिला ।।
फिर भी वह हर वक़्त लोगों को फ़क़त हंँसता मिला ।।
मंज़िलों पर लोग सब आराम फ़रमाते मिले ,
वह वहाँँ भी कुछ न कुछ सच कुछ न कुछ करता मिला ।।
सब उछलते-कूदते जब देखो तब चलते मिले ,
वह हमेशा ही समुंदर की तरह ठहरा मिला ।।
" मैं तो खुश हूं सच बहुत खुश आंँख तो यूँँ ही बहे ,
अपने हर पुर्साने ग़म से वह यही कहता मिला ।।
अपने ज़ालिम बेवफ़ा महबूब के भी वास्ते ,
हर जगह पागल सरीखा वह दुआ करता मिला ।।
हर कोई इक दूसरे को कर रहा नंगा जहाँँ ,
वह वहाँँ उघड़े हुओं पर कुछ न कुछ ढँकता मिला ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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