Saturday, February 25, 2017

गीत : 48 - माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥



माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ॥
तितलियाँ माँगूँ तो देना तितलियाँ लाकर ।
चीटियाँ माँगूँ तो देना चीटियाँ लाकर ।
सौंपना चूहा ही यदि चूहा मंगाऊँ मैं ,
मत कभी उसकी जगह हाथी मुझे देना ॥
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ॥
फूल माँगा जाए तो कलियाँ न ले आना ।
फल मंगाया जाए तो फलियाँ न ले आना ।
चाहिए कोंपल तो देना मत मुझे पत्ता ,
मैं तना माँगूँ तो मत डाली मुझे देना ॥
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ॥
ऊन माँगूँ ऊन के गोले बना लाना ।
सूत माँगूँ सूत के लच्छे बना लाना ।
टाट माँगूँ तो न देना तुम मुझे मख़मल ,
न रेशम की जगह खादी मुझे देना ॥
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ॥
यदि कहूँ लोहा तो लोहा ला पटकना तुम ।
यदि कहूँ पीतल तो पीतल आ के रखना तुम ।
मैं खरा सोना जो चाहूँ तुमसे रत्ती भर ,
उसके बदले मत किलो चाँदी मुझे देना ॥
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ॥
यदि कहूँ मैं चर्च चलने चर्च चल पड़ना ।
यदि कहूँ गुरुद्वारा गुरुद्वारे निकल पड़ना ।
मैं मदीना चाहूँ तो देना न तुम मक़्क़ा ,
मथुरा के एवज़ मुझे काशी नहीं देना ॥
माँगता हूँ जो वही साथी मुझे देना ॥
और जितना चाहूँ उतना ही मुझे देना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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