कर सरस्वती को नमन प्रथम गणपति का वंदन करता हूँ ।।
हों कामनाएँ पूरी मेरी विनती मन ही मन करता हूँ ।।
हिय से हो भाव विभोर तुम्हें शत-शत अभिनंदित करता हूँ ।।
यह कन्या रूप रतन तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।।
माँ की ममता का यह सागर मेरे दिल का उजियाला है ।।
असमर्थ हूँ यह कहने में इसे किस वात्सल्य से पाला है ?
निज उरउद्यान की नर्म कली कर कमल तुम्हारे धरता हूँ ।।
यह कन्या रूप रतन तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।।
मम गृह जब यह बिटिया जन्मी तब वंशी तक ना बज पाई ।।
पर आज विदा के क्षण गूँजे मेरे घर आँगन शहनाई ।।
प्रकृति का कैसा अजब नियम लेकिन परिपालित करता हूँ ।।
यह कन्या रूप रतन तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।।
माँ भ्रातृ बहन मामा मामी यादों में इसकी खोएँगे ।।
बिछड़ी जाती आज अपनों से यह सोच सिसक सब रोएँगे ।।
अपनी आँखों का नूर तुम्हें सौंप और प्रकाशित करता हूँ ।।
यह कन्या रूप रतन तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।।
मम हृदय नील अकाश चंद्र सम चम चम सा यह तारा था ।।
मैं अब तक जान न पाया क्यों इस पर अधिकार तुम्हारा था ?
मैं पित्र कहाने का अपना हक़ तुम्हें विसर्जित करता हूँ ।।
यह कन्या रूप रतन तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।।
नवगृह पढ़ना जा रामायण संविधान और भगवद् गीता ।।
चलना उस पथ जिस राह चलीं सावित्री,अनुसुइया , सीता ।।
इसका हो अटल सुहाग दुआ प्रभु से ये निवेदित करता हूँ ।।
यह कन्या रूप रतन तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।।
-एक पुत्री का पिता
- डॉ. हीरालाल प्रजापति
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