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Monday, December 31, 2018
Sunday, December 23, 2018
Sunday, December 16, 2018
ग़ज़ल : 270 - फ़ित्रत
हमने अजीब ही कुछ फ़ित्रत है पायी यारों ।।
हर बात धीरे-धीरे-धीरे ही भायी यारों ।।
उस तक पलक झपकते हम मीलों दूर पहुँचे ,
वह दो क़दम भी हम तक बरसों न आयी यारों ।।
उसको तो मौत ने भी ख़ुशियाँ ही ला के बाँटीं ,
हमको तो ज़िंदगी भी बस ग़म ही लायी यारों ।।
भूखे रहे मगर हम इतना सुकूँ है हमने ,
औरों की छीनकर इक रोटी न खायी यारों ।।
बदली समंदरों पर जाकर बरसने वाली ,
हैराँ हूँ आज रेगिस्तानों पे छायी यारों ।।
ख़ुश हूँ कि ग़ुस्लख़ाने में आज उसने मेरी ,
दिल से ग़ज़ल तरन्नुम में गुनगुनायी यारों ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Friday, December 14, 2018
Thursday, December 6, 2018
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मुक्तक : 948 - अदम आबाद
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
