Saturday, April 28, 2018

मुक्त मुक्तक : 885 - सूखा तालाब



कैसा ये अजीबोग़रीब मेरा जहाँ है ?
बरसात के मौसम में भी तो सूखा यहाँ है !!
सोना न , न चाँदी , न हीरे-मोती समझना 
तालाब में ढूँढूँ मैं अपने पानी कहाँ है ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...