Sunday, November 26, 2017

ग़ज़ल : 246 - क़ब्र खोदने को ......


हैराँ हूँ ; लँगड़े , चीतों सी तेज़ चाल लेकर ।।
चलते हैं रोशनी में अंधे मशाल लेकर ।।1।।
हुशयारों से न जाने करते हैं कैसे अहमक़ ,
आज़ादियों के चर्चे हाथों में जाल लेकर ।।2।।
चलते नहीं उधर से तलवार , तीर कुछ भी ,
जाते हैं फिर भी वाँ सब हैराँ हूँ  ढाल लेकर ।।3।।
हरगिज़ कुआँ न खोदें प्यासों के वास्ते वो ,
बस क़ब्र खोदने को चलते कुदाल लेकर ।।4।।
माथे नहीं हैं जिनके उनके लिए तिलक को ,
कुछ लोग थालियों में घूमें गुलाल लेकर ।।5।।
कुछ माँगने चला हूँ तो ये मुफ़ीद होगा ,
जाऊँ मैं उनके आगे मँगतों सा हाल लेकर ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


Tuesday, November 14, 2017

ग़ज़ल : 245 - धूप क्या होती है

                                         

एक पतला जानकर पापड़ तला वो ।।
बिन हथौड़ा तोड़ने मुझको चला वो ।।1।।
धूप क्या होती है दुख की , क्यों वो जाने ?
सुख के साये में हमेशा ही पला वो ।।2।।
फूँककर पीता है गर जो छाछ को भी ,
दूध का होगा यक़ीनन इक जला वो ।।3।।
है नहीं मँगता मगर जब जब भी आया ,
दर से मेरे कुछ लिये बिन कब टला वो ।।4।।
जो मुकर जाता है अपनी बात से फिर ,
आदमी तो है मगर इक दोग़ला वो ।।5।।
आज के हालात ने ही उसको बदला ,
कल तलक इंसान था सच , इक भला वो ।।6।।
राधिका उसको मिली कैसे हूँ हैराँ ?
जबकि रत्ती भर नहीं है साँवला वो ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

Monday, November 13, 2017

ग़ज़ल : 244 - मामूली मकान



पहले दिखती थी तुलसी , आज पान लगती है ।।
पल में गीता तो दम में , वो क़ुरान लगती है ।।
पूछ मत कि कैसी है , उसकी सौत में लज़्ज़त ,
उसके मुँह से तो गाली , भी अजान लगती है ।।
एक हम जो बचपन में , भी हैं दिखते अधबूढ़े ,
वो पचास की भी सच , नौजवान लगती है ।। 
वो निगाहों से अपनी , क़त्ल करती है सबका ,
सख़्त हैराँ हूँ सबको , अपनी जान लगती है ।।
शर्तिया महल है वो , जाने तुमको बाहर से ,
क्यों वो एक मामूली , सा मकान लगती है ।।
बेमिसाल ओ लासानी , वो बहुत जुदा सबसे ,
वो न इस सरीखी ना , उस समान लगती है ।।
जिसको देखो उसको ही , चुप कराता फिरता पर ,
मुझको बोलती भी वो , बेज़ुबान लगती है ।।
( सौत =आवाज़ , लज़्ज़त =आनंद ,लासानी =अद्वितीय  )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...