Sunday, December 30, 2012

इसे पढ़ना सख्त मना है !




            क्योंकि
 आजकल सभी बचपन से ही ' जाकी ' के जांगिये पहनने लगे हैं ( और अब तो  पहलवान भी लंगोटी कि जगह सपोर्टर पहनकर डंड पेलते हैं ) अतः मस्तराम को मैं अपना लंगोटिया  यार नहीं बल्कि जांगिया दोस्त कहूँगा। वो मेरा  बेस्ट फ्रैंड है और अपने नाम 'मस्तराम ' की तरह इकदम मस्त मस्त। आजकल तो सर्च लाईट लेकर ढूँढने पर भी ऐसे यथा नाम तथा गुण ,गुण संपन्न व्यक्ति म्यूजियम में भी नहीं मिलेंगे।

      अब हमारे पड़ोसी को ही ले लीजिये . पेशे से बीमा कम्पनी के एजेंट हैं .नाम तो अपना रखे है 'बुद्धूराम' किन्तु यकीन जानिए अपनी चतुर -चालाक-चतुराई भरी लच्छेदार बातों से घाघ से घाघ लोमड दिमाग लोगों को भी उनके लाख न चाहने पर भी एक न एक बीमा पॉलिसी खरीदने को मजबूर कर ही देते हैं। वहीँ उनकी विकराल काली कलूटी खूबसूरत बीवी जिनका नाम उनके माँ बाप ने न जाने क्या सोचकर 'शांति' रख दिया था अपने नाम के विरुद्ध घर तो घर सारे मोहल्ले में अपनी कर्कश काक वाणी से मौका बेमौका तहलका ओ कोलाहल मचाये रहती हैं।
खैर। इधर पिछले कई दिनों से मैनें मस्तराम की हरकतों को देखते हुए उसका नूतन नामकरण कर दिया है- निषेधाज्ञाराम।कुछ लोग लाल लगाते हैं , कुछ कुमार लगाते हैं , कुछ सिंह लगाते हैं उसी तरह मस्तराम के खानदान में सभी लोगों के मूल नाम के साथ राम का प्रत्यय जोड़ा जाता है अतः मैनें भी इसका ध्यान रखते हुए  राम लगाना जरूरी  समझा वरना केवल निषेध अथवा निषेधाज्ञा से ही काम चल सकता था और मित्र ने भी इस नाम को सहर्ष स्वीकार करते हुए इसको सार्थक करने में कोई कोर क़सर बाकी नहीं रख छोड़ी। कैसे ?
चाहे किसी और बात में वह अद्वितीय हो न हो किन्तु निशेधाज्ञाओं का उल्लंघन करने में अब कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता। धूम्र पान का तो वह लैला के लिए मजनूँ की तरह दीवाना है। टाकीज और बसों में धूम्रपान करने में उसे विशेष आनंद की अनुभूति होती है ,चाहे नो स्मोकिंग के कितने ही बड़े बड़े बोर्ड क्यों न लगे हों। जब कोई सिगरेट के धुंए से परेशान होकर उसे टोक देता है तो उसका मूड आफ हो जाता है अतः या तो वह बस से उतर जाता है अथवा टाकीज से बाहर आ जाता है या फ़िर लड़ झगड़कर पिट पिटा या पीट पाट कर दोबारा मूड बनाता है।
दूरदर्शन की सीख चाहे सबको लग जाये कि रेल के डिब्बों में गंदगी नहीं फैलाना चाहिए किन्तु मस्तराम को मूंगफली और केले खाकर छिलके फ़ैलाने में महान मज़ा आता है। पान गुटका खाकर सीट के नीचे पुच्च पुच्च करके थूकना तो उसकी आदिकाल से आदत रही है। वैसे डिब्बे के अन्दर मद्यपान वह अत्यंत सावधानी पूर्वक  अवसर देख कर ही करता है किन्तु स्मोकिंग सरेआम बिंदास  बेझिझक।
राह चलते चलते यदि एकाएक पेशाब लग आये तो कभी कभी वह ऐसी जगहों पर भी मूत्र विसर्जन करने में नहीं हिचकता जहाँ स्पष्ट लिखा हो ''कृपया यहाँ पेशाब मत कीजिए '' बल्कि मूतते मूतते इस निषेधात्मक विनयवाक्य में से '' मत '' शब्द को काट या मिटाकर एवं  ''यहाँ '' को ''यहीं '' करके ही अपनी जिप ;चैन या बटन बंद करता है।
सचमुच अपने किसी भी नाम को सार्थक सिद्ध करने में वह नंबर एक है। और चाहे कुछ पढ़े या न पढ़े किन्तु उन लेखों को तो वह अवश्यमेव पढता है जिसे कतई न पढने के लिए उससे कहा जाए।
मस्तराम उर्फ़ निषेधाज्ञाराम की तरह कहीं आप भी तो इस तरह की छोटी छोटी  कुच्चु- कुच्चु किन्तु अतिशय महत्वपूर्ण निषेधाज्ञाओं  के प्रति सविनय अवज्ञाकारी आन्दोलन में तो लिप्त नहीं हैं ? बोलिए बोलिए। मुझे तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। अब देखिये न मेरी चेतावनी ''इसे पढना सख्त मना है '' के बावजूद भी आप अभी तक निरंतर पढ़ते ही चले जा रहे हैं-पढ़ते ही चले जा रहे हैं। अरे अभी भी मान जाइए जनाब , अब तो पढना बंद कर दीजिये। देखिये यदि आप मूसलों की मार से नहीं डरते हैं तो आगे पढ़ते चलिए वरना यहीं स्टॉप कर दीजिये क्योंकि आगे पढने का मतलब ओखली में खोपड़ी देना है , सांड को मारने का न्योता देना है , अपनी हुज्जत करना है। आप फ़िर भी नहीं न मानते हैं तो आपकी मर्ज़ी। पढ़िए ,आँखें गड़ा गड़ा के पढ़िए।
मेरा और मस्तराम का तो यह बिलकुल नितांत पर्सनल निजी अनुभव है परन्तु शायद आपने भी कभी कभार देखा होगा कि टाकीजों में जब भी कोई ए प्रमाणपत्र वाली फिल्म लगती है जिसके पोस्टर पर लिखा होता है  ''कृपया अठारह साल से कम उम्र वाले न देखें '' तब भी उन टाकीजों के बुकिंग आफिस के सामने अठारह साल से कम उम्र के काफी महानुभाव टिकट लेते और हँसते मुस्कुराते हुए एन्टर होते पाए जाते हैं। भई हमने तो बचपन में ऐसी कई फ़िल्में देखी थीं और मजाल थी किसी की कि किसी ने हमें कभी टिकट देने से मना किया हो ?आखिर ये क्या बात हुई कि एक तो मन में जिज्ञासा जगा दी और ऊपर से देखने की भी बेरोक टोक मनाही। सब दिखावा है ,बल्कि मैं तो फिल्म और सीरियल निर्माताओं को ये मुफ्त किन्तु अत्यंत कारगर सलाह दूंगा कि वे अपनी फिल्म को हिट करने के लिए सभी पोस्टरों पर ,विज्ञापनों में बोल्ड लैटर्स में छपवाएँ ''अठारह साल से कम उम्र वाले न देखें ''। देखिये आपकी फिल्म कैसे हॉउस फुल नहीं जाती ? ऐसी निषेधाज्ञाओं को कौन मानता है और कौन उल्लंघन से रोकता है ?.........बात करते हैं। हुंह।
सिगरेट  बीडी तम्बाकू शराब आदि की पैकेजिंग पर सूक्ष्म अक्षरों में अंकित वैधानिक चेतावनी का क्या अर्थ है जबकि होना तो यह चाहिए कि इन पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जाये अथवा इन चेतावनियों की औपचारिकताओं -ढोंग ढकोसलों पाखंडों को प्रतिबंधित किया जाए। जब कोई मानता नहीं जब कोई दण्डित नहीं होता तो यह सब फालतू है। मैनें तो अक्सर देखा है कि जब गाड़ी प्लेट फार्म पर खड़ी होती है तब तो प्लेटफार्म पर खड़े या किसी को छोड़ने आये बैठे लोग चढ़ चढ़ कर हगते -मूतते हैं जबकि टायलेट के दरवाज़े पर लिखा होता है और एनाउन्स्मेंट भी होता रहता है कि ''कृपया जब गाड़ी स्टेशन पर खड़ी हो तो शौचालय का प्रयोग न करें ''I भला कौन मानता है ऐसी बेतुकी चेतावनियों को ?
चेतावनियों की अवहेलना करना और निषेधाज्ञाओं को न मानना हम भारत वासियों के लिए बांये हाथ का गैर रोमांचकारी खेल है इनमें हम कोई जोखिम नहीं देख ते। जहाँ तक संभव होता है हम इनकी अवज्ञा करने की ही फ़िराक में रहते हैं बल्कि इसे एक अधिकार एक उपलब्धि मानते हैं। अब देखिये न ,आप अपने को ही ले लीजिये ......इफ यू डोंट माइंड ...... मेरी दो चेतावनियों के बावजूद भी आपके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। आप लगातार मेरी चेतावनी ''इसे पढना सख्त मना है'' का उल्लंघन किये जा रहे हैं। क्या मैं ग़लत हूँ ?

-डॉ. हीरालाल प्रजापति


3 comments:

Ghanshyam kumar said...
This comment has been removed by the author.
Ghanshyam kumar said...

सुन्दर मीमांसा...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ghanshyam Kumar जी !

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