हूँ बहुत बदशक्ल कुछ रानाई लाकर दे ।।
देख सब मुँह फेरें इक शैदाई लाकर दे ।।
हर तरफ़ से बस नुकीला खुरदुरा ही हूँ ,
आह कुछ गोलाई , कुछ चिकनाई लाकर दे ।।
बख़्श मत ऊँचाई बेशक़ बित्ते भर क़द को ,
आदमी जैसी मगर लंबाई लाकर दे ।।
मुझ में खोकर , मुझसे ! खुद को ; ज्यों का त्यों वापस ,
वो न थी जिसकी ज़ुबाँ चिल्लाई लाकर दे ।।
मह्फ़िलो मज्मा मुझे बेचैन करते हैं ,
जो सुकूँ दे , मुझको वो तनहाई लाकर दे ।।
ख़्वाब में तोहफ़े में उसने मुझको दी दिल्ली ,
मैंने नींदों में कहा शंघाई लाकर दे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति