अपनों से बैठे खफ़ा हैं खार खा-खा कर ।।
घूँट पीते ख़ून का खूंख़्वार
खा-खा कर ।।1।।
बेबसी में जो न खाना था वही
जाँ को ;
हम बचाते पड़ गए बीमार खा-खा
कर ।।2।।
इस क़दर मज़्बूर हैं हम प्यास
से अपनी ;
सच बुझाते हैं इसे अंगार
खा-खा कर ।।3।।
जीतने को और भी अपनी कमर
कसते ;
दुश्मनों से हम क़रारी हार
खा-खा कर ।।4।।
खाल गेंडे सी हुई रोज़ अपने
मालिक से ;
चाबुक और डण्डे हज़ारों बार
खा-खा कर ।।5।।
कुछ हुआ जो चार दिन के चार
भूखे हम ;
उठ गए थाली से लुक़्में चार
खा-खा कर ? ।।6।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति